इतिहास
जिले का इतिहास
ब्रिटिश काल के दौरान गरियाबंद जिला महासमुंद तहसील के अंतर्गत आता था। प्रारंभ में बिंद्रानवागढ़ तहसील के नाम से गरियाबंद जिले का अस्तित्व था। प्रशासनिक सुविधाओं का जनसामान्य तक पहुंच को विस्तारित करने के उद्देश्य से क्रमशः फिंगेश्वर, छुरा, देवभोग, एवं मैनपुर तहसील, उपतहसील में विभाजित हुआ है। बिन्द्रानवागढ़ के प्रमाणित दस्तावेज पर्याप्त उपलब्ध नहीं है। पर जनश्रुति और कतिपय प्रमाणों के अनुसार आदिवासी राजाओं जंमीदारों का प्रशासनिक क्षेत्र रहा है। बिन्द्रानवागढ़ और गरियाबंद मुख्य प्रशासनिक क्षेत्र रहें। गोंड़ आदिवासी राजाओं ने अपनी राजधानी 1901 में छुरा स्थानांतरित किया। इस अवधि में फिंगेश्वर की जंमीदारी (घाट खाल्हे के 82 ग्रामों सहित शासित होते रहे) राजिम में मराठा शासकों के नियंत्रण में जमींदारियां बनी। पाण्डुका क्षेत्र में साहू लोगों की जमींदारियां बनी पण्डित सुन्दरलाल शर्मा की मुख्य कार्य स्थली राजिम क्षेत्र था।
जिले का पुरातत्व
गरियाबंद जिले की शुरूआत ही राजिम के पुरातन मंदिरों के दर्शन से प्रारंभ होता है। जिले का प्रमुख धार्मिक, ऐतिहासिक एवं महानदी, पैरी तथा सोंढ़ूर के संगम पर स्थित राजिम पुरातन दृष्टि से महत्वपूर्ण नगर है। यहां का मंदिर सुन्दर विष्णु मंदिरों के लिए प्रसिद्ध रहा है। कुलेश्वर मंदिर में उपासना कक्ष और मण्डप है। मंदिर के प्रकोष्ट मण्डप की ओर खुलते है, जो एक संकीर्ण कक्ष है, जो दो पंक्तियों में खड़े स्तंभो के सहारे खड़ा है। यहां मंदिरों का निर्माण 14वीं या 15वीं शताब्दी में किया गया था। नगर में अनेक मंदिरों का समुह है, जिसमें से एक राजीव लोचन मंदिर है। यहां के प्रतिष्ठित मुख्य मुर्ति चतुर्भुज विष्णु की है। जिसमें सभी सामान्य चिन्ह स्थित है। मंदिर के भीतर एक दीवार पर विभिन्न कालों के दो शिलालेख है, इनमें से एक शिलालेख संभवतः 8वीं या 9वीं शताब्दी की है। राजीव लोचन का सुन्दर और पवित्र मंदिर सात अन्य मंदिरों से घिरा हुआ है। ये अपेक्षाकृत आधुनिक है। राजीव लोचन मंदिर 18 मीटर लम्बा और 8 मीटर चौड़ा है तथा लगभग 2.5 मीटर ऊंचे चबुतरे पर स्थित है। मंदिर का मण्डप 12 मीटर लम्बा एवं 5 मीटर चौड़ा है। इसके अलावा राजेश्वर मंदिर, दानेश्वर का मंदिर, जगन्नाथ का मंदिर, राम मंदिर भी स्थित है।